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रोशन कर दो जहाँ

सुबह के अबोध धूप से रोशन होता हैं जहाँ ; संध्या की लाली से डख कर हो जाता हैं दुआं। जीवन की भी लय यही हैं; बड़ी सीख मिलती हैं यहाँ। मम्ता की गोद से उतर के जवानी के नशे में झूलते हैं हम। ज़िन्दगी का मूल हूँ "मैं" यह समज बैठ्ते हैं हम। मांगों की अपार दौलत से दुनिया लूट लेते हैं हम। अपने अस्तित्व को भी दांव पर लगा देते हैं हम। अपने पराये सबको दुःख दिए जाते हैं हम। मैं को खुश किए जाते हैं हम। हर ज़िन्दगी कट जाती हैं दोस्तों पर जीने का वो अंदाज़ ही क्या जो सिर्फ अपने लिए जीए? डलती तो हैं हर शाम दोस्तों पर वो शाम ही क्या जो तारों को रोशन ना कर जाये ?